[PDF] Hanuman Bahuk PDF | श्री हनुमान बाहुक

Hanuman Bahuk PDF: हनुमान बाहुक हिंदी अर्थ सहित – Hanuman Bahuk Path Hindi and Sanskrit PDF Download Download PDF of हनुमान बाहुक हिंदी अर्थ सहित – Hanuman Bahuk Path in Hindi and Sanskrit from the link available below in the article, Hindi and Sanskrit हनुमान बाहुक हिंदी अर्थ सहित – Hanuman Bahuk Path PDF free . हनुमान बाहुक हिंदी अर्थ सहित – Hanuman Bahuk Path PDF Hindi and Sanskrit

Hanuman Bahuk pdf : Hanuman Bahuk: श्री हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए हनुमान बाहुक का पाठ किया जाता है। हनुमान जन्मोत्सव व जयंती पर इसका पाठ अत्यंत फलदायी होता है, जीवन में चल रही बाधाओं और कष्टों से मुक्ति के लिए Hanuman Bahuk का पाठ नियमित रूप से संकल्प लेकर अवश्य करें। 

एक समय श्रीमद्गोस्वामी तुलसीदास की बाहु में असहाय पीड़ा हुई जो सारे देह में व्याप्त गई। प्रेमियों ने बहुत उपचार किये, परन्तु पीड़ा मिटाने में वे सफल न हुए। यह रोग व कष्ट क्या है, किसी को कुछ विदित न हो रहा था। उन्होंने श्री हनुमान जी से रोग-निवृत्ति के लिये प्रार्थना की। सारा कुरोग श्री हनुमान जी की कृपा से विनष्ट हो गया। रोग छूटने पर इन स्तोत्रों को उन्होंने एकत्र कर दिया और हनुमान बाहुक नाम रखा। पिड़ा छूट गई; अतएव इस ग्रंथ का नाम यही पड़ा। लौकिक एवं पारलौकिक बाधाओं का शमन करने के वाले Hanuman Bahuk in Hindi PDF को अर्थ सहित यहां से डाउनलोड करें – 

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Hanuman Bahuk Path Pdf श्री हनुमान बाहुक,hanuman bahuk pdf

Hanuman Bahuk PDF

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एकादश मुखी हनुमान कवच

श्री हनुमान बाहुक पाठ

॥ छप्पय ॥
सिंधु-तरन, सिय-सोच-हरन, रबि-बालबरन-तनु।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु॥
गहन-दहन-निरदहन-लंक नि:संक, बंक-भुव।
जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव॥
कह तुलसिदास सेवत सुलभ, सेवक हित संतत निकट।
गुनगनत, नमत, सुमिरत, जपत, समन सकल-संकट-बिकट ॥1॥

स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन-तेज-घन।
उर बिसाल, भुजदण्ड चंड नख बज्र बज्रतन॥
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन।
कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल बल भानन॥
कह तुलसिदास बस जाहु उर मारुतसुत मूरति बिकट।
संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहूँ नहिं आवत निकट ॥2॥

॥ झूलना ॥
पंचमुख-छमुख-भृगुमुख्य भट-असुर-सुर,
सर्व-सरि-समत समरत्थ सुरो।
बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली,
बेद बंदी बदत पैजपूरो॥
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासु बल,
बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरी।
दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है
पवनको पूत रजपूत रूरो ॥3॥

॥ घनाक्षरी ॥
भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन,
अनुमानि सिसुकेलि कियो फेरफार सो।
पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन,
क्रमको न भ्रम, कपि बालक-बिहार सो॥
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि
लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो
बल कैधौं बीररस, धीरज कै, साहस कै,
तुलसी सरीर धरे सबनिको सार सो ॥4॥

भारत में पारथ के रथकेतु कपिराज,
गाज्यो सुनि कुरुराज दल हलबल भो।
कह्यो द्रोन भीषम समीरसुत महाबीर,
बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो॥
बानर सुभाय बालकेलि भूमि भानु लागि,
फलँग फलाँगहँतें घाति नभतल भो।
नाइ-नाइ माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं,
हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ॥5॥

गोपद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक,
निपट निसंक परपुर गलबल भो।
द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर,
कंदुक-ज्यों कपिखेल बेल कैसो फल भो॥
संकटसमाज असम्झस भो रामराज
काज जुग-पूगनिको करतल पल भो।
साहसी समत्थ तुलसीको नाह जाकी बाँह,
लोकपाल पालनको फिर थिर थल भो॥6॥

कमठकी पीठि जाके गोड़निकी गाड़ै मानो
नापके भाजन भरि जलनिधि-जल भो।
जातुधान-दावन परावनको दुर्ग भयो,
महामीनबास तिमि तोमनिको थल भो॥
कुंभकर्न-रावन-पयोदनाद-ईंधनको
तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान
सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो ॥7॥

दूत रामरायको, सपूत पूत पौनको, तू
अंजनीको नंदन प्रताप भूरि भानु सो।
सीय-सोच-समन, दुरित-दोष-दमन,
सरन आये अवन, लखनप्रिय प्रान सो॥
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबेको भयो,
प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो।
ज्ञान-गुनवान बलवान सेवा सावधान,
साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो ॥8॥

दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल,
बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को।
पाप-ताप-तिमिर तुहिन-विघटन-पटु,
सेवक-सरोरुह सुखद भानु भोरको॥
लोक-परलोक तें बिसोक सपने न सोक,
तुलसीके हिये है भरोसो एक ओरको।
रामको दुलारो दास बामदेवको निवास,
नाम कलि-कामतरु केसरी-किसोर को ॥9॥

महाबल-सीम, महाभीम, महाबानइत,
महाबीर बिदित बरायो रघुबीरको।
कुलिस-कठोरतनु जोरपरै रोर रन,
करुना-कलित मन धारमिक धीर को॥
दुर्जनको कालसो कराल पाल सज्जन को,
सुमिरे हरनहार तुलसीकी पीरको।
सीय-सुखदायक दुलारो रघुनायकको,
सेवक सहायक है साहसी समीरको ॥10॥

रचिबेको बिधि जैसे, पालिबेको हरि, हर
मीच मारिबेको,ज्याइबेको सुधापान भो।
धरिबेको धरनि, तरनि तम दलिबेको,
सोखिबे कृसानु, पोषिबेको हिम-भानु भो॥
खल-दुख-दोषिबेको, जन-परितोषिबेको,
माँगिबो मलीनताको मोदक सुदान भो।
आरतकी आरति निवारेबेको तिहूँ पुर,
तुलसीको साहेब हठीलो हनुमान भो ॥11॥

सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि,
सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँकको।
देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ,
बापुरे बराक कहा और राजा राँकको॥
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद,
ताकै जो अनर्थ सो समर्थ एक आँकको।
सब दिन रूरो परै पूरो जहाँ-तहाँ ताहि,
जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँकको ॥12॥

सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि,
लोकपाल सकल लखन राम जानकी।
लोक परलोकको बिसोक सो तिलोक ताहि,
तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी॥
केसरीकिसोर बंदी छोरके नेवाजे सब,
कीरति बिमल कपि करुनानिधानकी।
बालक-ज्यौँ पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको,
जाके हिये हुलसति हाँक हनुमानकी ॥13॥

करुना निधान, बलबुद्धिके निधान, मोद-
महिमानिधान, गुन-ज्ञानके निधान हौ।
बामदेव-रूप, भूप रामके सनेही, नाम
लेत-देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ॥
आपने प्रभाव, सीतानाथके सुभाव सील,
लोक-बेद-बिधिके बिदुष हनुमान हौ।
मनकी, बचनकी, करमकी तिहूँ प्रकार,
तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ ॥14॥

मनको अगम, तन सुगम किये कपीस,
काज महाराजके समाज साज साजे हैं।
देव-बंदीछोर रनरोर केसरीकिसोर,
जुग-जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं॥
बीर बरजोर, घटि जोर तुलसीकी ओर
सुनि सकुचाने साधु, खलगन गाजे हैं।
बिगरी सँवार अंजनीकुमार कीजे मोहिं,
जैसे होत आये हनुमान निवाजे हैं ॥15॥

॥ सवैया ॥
जानसिरोमनि हौ हनुमान सदा जनके मन बास तिहारो।
ढारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो॥
साहेब सेवक नाते ते हातो कियो सो तहाँ तुलसीको न चारो।
दोष सुनाये तें आगेहुँको होशियार ह्वै हों मन तौ हिय हारो ॥16॥

तेरे थपे उथपै न महेस, थपै थिरको कपि जे घर घाले।
तेरे निवाजे गरीबनिवाज बिराजत बैरिनके उर साले॥
संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरीके-से जाले।
बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले ॥17॥

सिंधु तरे, बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंकसे बंक मवा से।
तैं रन-केहरि केजरिके बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से॥
तोसों समत्थ सुसाहेब सी सहै तुलसी दुख दोष दवासे।
बानर बाज बढ़े खल-खेचर, लीजत क्यों न लपेति लवा-से ॥18॥

अच्छ-बिमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो।
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्न-से कुंझर केहरि-बारो॥
राम-प्रताप-हुतासन, कच्छ, बिपच्छ, समीर समीरदुलारो।
पापतें, सापतें, ताप तिहूँतें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो ॥19॥

॥ घनाक्षरी ॥
जानत जहान हनुमानको निवाज्यौ जन,
मन अनुमानि, बलि, बोल न बिसारिये।
सेवा-जग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी,
साहेब सुभाव कपि साहिबी संभारिये॥
अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति,
मोदक मरै जो, ताहि माहुर न मारिये।
साहसी समीरके दुलारे रघुबीरजूके,
बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये ॥20॥

बालक बिलोकि, बलि, बारेतें आपनो कियो,
दीनबंधु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये।
रावरो भरोसो तुलसीके, रावरोई बल,
आस रावरीयै, दास रावरो बिचारिये॥
बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो,
माथे पगु बलीको, निहारि सो निवारिये।
केसरीकिसोर, रनरोर, बरजोर बीर,
बाँहुपीर राहुमातु ज्यौँ पछारि मारिये ॥21॥

उथपे थपनथिर थपे उथपनहार,
केसरीकुमार बल आपनो सँभारिये।
रामके गुलामनिको कामतरु रामदूत,
मोसे दीन दूबरेको तकिया तिहारिये॥
साहेब समर्थ तोसों तुलसीके माथे पर,
सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये।
पोखरी बिसाल बाँहु, बलि बारिचर पीर,
मकरी ज्यौँ पकरिकै बदन बिदारिये ॥22॥

रामको सनेह, राम साहस लखन सिय,
रामकी भगति, सोच संकट निवारिये।
मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे,
जीव-जामवंतको भरोसो तेरो भारिये॥
कूदिये कृपाल तुलसी ससुप्रेम-पब्बयतें,
सुथल सुबेल भालु बैठिकै बिचारिये।
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँहपीर क्यों न,
लंकिनी ज्यों लातघार ही मरोरि मारिये ॥23॥

लोक-परलोकहूँ तिसोक न बिलोकियत,
तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये।
कर्म, काल, लोकपाल, अग-जग जीवजाल,
नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये॥
खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर,
तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये।
बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि,
उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये ॥24॥

करम-कराल-कंस भूमिपालके भरोसे,
बकी बकभगिनी काहूतें कहा डरैगी।
बड़ी बिकराल बालघातिनी न जात कहि,
बाँहुबल बालक छबीले छोटे छरैगी॥
आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख,
पाप जाय सबको गुनीके पाले परैगी।
पूतना पिसाचिनी ज्यौँ कपिकान्ह तुलसीकी,
बाँहपीर महाबीर, तेरे मारे मरैगी ॥25॥

भालकी कि कालकी कि रोषकी त्रिदोषकी है,
बेदन बिषम पाप-ताप छलछाँहकी।
करमन कूटकी कि जंत्रमंत्र बूटकी,
पराहि जाहि पापिनी मलीन मनमाँहकी॥
पैहहि सजाय नत कहत बजाय तोहि,
बावरी न होहि बानि जानि कपिनाँहकी।
आन हनुमानकी दोहाई बलवानकी,
सपथ महाबीरकी जो रहै पीर बाँहकी ॥26॥

सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल,
लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है।
लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार,
जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है॥
तोरि जमकातरि मदोदरि कढ़ोरि आनी,
रावनकी रानी मेघनाद महँतारी है।
भीर बाँहपीरकी निपट राखी महाबीर,
कौनके सकोच तुलसीके सोच भारी है ॥27॥

तेरो बालकेलि बीर सुनि सहमत धीर,
भूलत सरीरसुधि सक्र-रबि-राहुकी।
तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब,
तेरो नाम लेत रहै आरति न काहुकी॥
साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि,
हाथ कपिनाथहीके चोटी चोर साहुकी।
आलस अनख परिहासकै सिखावन है,
एते दिन रही पीर तुलसीके बाहुकी ॥28॥

टूकनिको घर-घर डोलत कँगाल बोलि,
बाल ज्यौं कृपाल नतपाल पालि पोसो है।
कीन्ही है सँभार सार अंजनीकुमार बीर,
आपनो बिसारिकैं न मेरेहू भरोसो है॥
इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु,
कपिराज साँची कहौँ को तिलोक तोसो है।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास,
चीरीको मरन खेल बालकनिको सो है ॥29॥

आपने ही पापतें त्रितापतें कि सापतें,
बढ़ी है बाँहबेदन कही न सहि जाति है।
औषध अनेक जंत्र-मंत्र-टोटकादि किये,
बादि भये देवता मनाये अधिकाति है॥
करतार, भरतार, हरतार, कर्म, काल,
को है जगजाल जो न मानत इताति है।
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो रामदूत,
ढील तेरी बीर मोहि पीरतें पिराति है ॥30॥

दूत रामरायको, सपूत पूत बायको,
समत्थ हाथ पायको सहाय असहायको।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत,
रावन सो भट भयो मुठिकाके घायको॥
एते बड़े साहेब समर्थको निवाजो आज,
सीदत सुसेवक बचन मन कायको।
थोरी बाँहपीरकी बड़ी गलानि तुलसीको,
कौन पाप कोप, लोप प्रगट प्रभायको ॥31॥

देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग,
छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं।
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम,
रामदूतकी रजाइ माथे मानि लेत हैं॥
घोर जंत्र मंत्र कूट कपट कुरोग जोग,
हनूमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं।
क्रोध कीजे कर्मको प्रबोध कीजे तुलसीको,
सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं ॥32॥

तेरे बल बानर जिताये रन रावनसों ,
तेरे घाले जातुधन भये घर-घरके।
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज,
सकल समाज साज साजे रघुबरके॥
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत,
सजल बिलोचन बिरंचि हरि हरके।
तुलसीके माथेपर हाथ फेरो कीसनाथ,
देखिये न दास दुखी तोसे कनिगरके ॥33॥

पालो तेरे टूकको परेहू चूक मूकिये न,
कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये।
भोरानाथ भोरेही सरोष होत थोरे दोष,
पोषि तोषि थापि आपनो न अवडेरिये॥
अंबु तू हौं अंबुचर, अंब तू हौं डिंभ, सो न,
बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये।

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